पृष्ठ:हड़ताल.djvu/२००

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अङ्क ३]
[दृश्य १
हड़ताल

एडगार

[अपने भावों को छिपाने के लिए उबल पड़ता है]

इस हड़ताल में मैं सोलहो आना मजूरों के पक्ष में हूँ।

एनिड

वह तीस साल से इस कंपनी के सभापति हैं। सब उन्हीं का किया हुआ है और सोचो उन्हें कैसी कैसी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ी हैं। उन्हीं ने उन का बेड़ा पार लगाया। टेड तुम उन्हें-

एडगार

तुम चाहती क्या हो? तुम ने अभी कहा कि तुम्हें आशा है, दादा कुछ रियायत करेंगे। अब तुब चाहती हो कि रियायत न करने में मैं उनका साथ दूँ। यह खेल नहीं है, एनिड।

एनिड

[तेज़ होकर]

तो मेरे लिए भी दादा के हाथों से उन सब अख्तिआरों के निकल जाने का भय खेल नहीं है, जो उनके जीवन के

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