पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१०४

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६३ नहीं । दाल चाहे जिसकी भी हो वह इस भांति बनाई जायँ कि ज़रा-सा मी कचरा-मैल उसमें न रहे। उसे भलीभांति साफ कर लो। जब दाल बनाने बैठो तब उसे फिर से देख-भाल कर २-३ पानी से खूब धो डालो। फिर देगची में पानी गर्म करो तब उस में दाल छोड़ो। एक ही बार में पूरा पानी डाल देना चाहिए । दुबारा पानी डालने से दाल का स्वाद खराब हो जाता है। नमक श्रादि का अन्दाज भी बिगड़ जाता है । यदि किसी कारणवश दुवारा पानी डालना पड़े तो हमेशा गर्म पानी डालना चाहिए। अरहर की दाल- अरहर की चुगी-बीनी दाल अाध सेर, घी आध पाव, दही १ छ०, बाल मिर्च १ माशा, लोंग ४ रत्ती, बड़ी इलायची ६ रत्ती, अदरक ४ माशा, होंग २ रत्ती, जीरा १ माशा; ले कर पहले दाल को दो-तीन पानी से धो कर थोड़े पानी में छोड़ दो। ऊपर से हल्दी पीस कर छोड़ दो और बटलोई चूल्हे पर पकने दो। जब दाल गल जाय तब उतार कर पानी निथार लो और दाल किसी दूसरे बर्तन में निकाल लो। अन्दाज से पिसा हुआ नमक, अदरक, दही, सब उसी उबली हुई दाल में मिला कर कुछ देर के लिए ढक दो। फिर बटलोई में १ छ० घी और हींग, जीरा श्रादि सब मसाला छोड़ कर बघार तैयार कर उस दाल को छोंक कर खूब भूनो । जब भुन जाय तब निथरा हुश्रा पानी छोड़ दो। यदि पानी कम पड़ जाय तो गर्म करके और डाल दो और ६ माशा चीनी चार तोला अमचूर डाल बटलोई अंगारों पर रख दो तथा उसका मुंह बन्द कर दम में पकने दो । कुछ देर बाद भोजन करो, अत्युत्तम दाल बनेगी। दूसरी सर्वोत्तम शाही रीति अरहर की दाल बनाने की यह है कि १ सेर चुगी-बीनी दाल जिसमें एक भी छिल्का न हो धो, साफ करके कुछ अधिक पानी में उबाल लो। बाद को कपड़े में छान डालो। फिर