पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१३८

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पद्यपि बहुमूल्य वस्त्र धारण करते थे, तथापि वे भारत के ही अन्यान्य प्रांतों के बने होते थे, परन्तु जब से पश्चिमी सभ्यता का दौर-दौरा हुआ है प्रत्येक प्राणी के मन में नये फैशन के अनुसार वस्त्र पहनने की इच्छा उत्पन्न हो उठी। सादा जीवन तो कोई व्यतीत करना ही नहीं चाहता; यह भारत की दरिद्रता का एक मुख्य कारण है। जब से स्त्रियों में जाग्रति हुई है, उनके कपड़ों का खर्चा बहुत ही बढ़ गया है । बीसियों बढ़िया, घटिया साड़ियाँ ट्रक में भरी रहने पर भी उनके मन में और भी नये-नये फैशन की साड़ियाँ खरीदने की इच्छा बनी रहती है । कन्याएं सयानी होते ही वस्त्रों के चाव को मन में धारण कर लेती हैं । वास्तव में व्यर्थ कपड़ों का इतना जमघट एक भारी फजूल- खची और परले दर्जे की बुराई है । बढ़िया साड़ियाँ भी जी का जंजाल हैं । उनकी एक बार की धुलाई का खर्चा ही एक साधारण साड़ी के मूल्य के बराबर होता है । साधारण खद्दर या मिल की ही सुन्दर साड़ियाँ खरीदना-जो सरलता से धुल सकें-बहुत उत्तम बात है। आज कज बहुत सस्ती और बहुत सुन्दर सूती साड़ियाँ बाजार में पाने लगी हैं । और यदि वे सुघड़ाई से पहनी जायं तो बढ़िया साड़ियों की तरफ मन ही न ललचे । इसके सिवाय सीधा-सादा स्वच्छ जीवन भी आत्मा को आनन्द और तृप्ति देने वाला है। उससे सदैव सन्तोष होता है। घर का रुपया भी बचता है। यह समझना बिल्कुल भूल है कि वस्त्रों से शरीर की शोभा बढ़ती है । यद्यपि एक अंश तक ऐसा है, परन्म शरीर की वास्तविक शोभा अच्छे स्वास्थ्य में है । योरोप में कुछ समय पूर्व स्त्रियाँ भाँति-भाँति के वस्त्रों द्वारा अपने शरीर की शोभा बढ़ाया करती थीं-पर अब वे समझ पाई हैं कि शोभा की वृद्धि का उपाय तो तन्दुरुस्ती की रक्षा करना, है जो व्यायाम और नियमित आहार-विहार से ही उत्पन्न हो सकता है। कपड़ा वर्ष में २ या ३ बार इकट्ठा खरीद लेना चाहिए । इससे मान