पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१५७

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बर्तनों की व्यवस्था बर्तन कदापि इधर-उधर अस्त-व्यस्त नहीं पड़े रहने चाहिए। उन्हें रसोई घर के पास पालमारी या दीवाल में तख्ते लगा कर सुन्दरता साथ रखना चाहिये । पतीलियां, बटलोइयां, लोटे, गिलास, कटोरे, कटो- रियाँ इत्यादि अपनी कतार में बाकायदा लगानी चाहिए । थाल, थालियाँ, तश्तरियाँ इत्यादि आलमारी के भीतर किसी लकड़ी की खूटी के सहारे खड़ी कर देनी चाहिए । पालमारी पर लगभग तीन अंगुल चौड़ी एक खाचो लगा कर उसी के अन्दर चमचा, चमची, चिमटा, करछुल लटका देनी चाहिए। चाकू, केचो, दराँत यादि भी इसी भाँति रखे जा सकते हैं । पूजा के बर्तन स्वच्छता के साथ पूजा-गृह में रखे जाने चाहिए। आमद खर्च श्रामद खर्च का हिसाब रखना, सदा श्रामद से कम खर्च करना; पाई-पाई का हिसाब रखना, जो कन्या जानती है वह अपनी सुसराल में कभी कष्ट न पावेगी । वह मिट्टी के घर को सोने का बना देगी। यह मत समझो कि बहुत धन से ही सुख मिलेगा । माता-पिता को चाहिए कि वे अपनी पुत्रियों को प्रारम्भ से ही कुछ धन देते रहें जिसका हिसाब किताब रखने का वे छुटपन ही से अभ्यास रखें। प्रत्येक रविवार को माता-पिता उनके हिसाब की जाँच-पड़ताल करें और उनकी भूल निकालें, तथा नये-नये नियम समझावें । यदि इस नियम का कड़ाई से पालन किया जायगा तो बच्चे उस धन को फिजूल न फूंक सकेंगे। उन्हें कलम, दावात, स्याही, पुस्तकें श्रादि के सम्बन्ध में भी सावधान करते रहना चाहिए। गृहस्थी में तीन प्रकार के खर्च होते हैं । एक नित्य का खर्च, किराया, टेक्स, खाने पहनने का खर्च, बच्चों के पढ़ने लिखने का खर्च, नौकरों के वेतन और चिराग-बत्ती का खर्च आदि आदि । दूसरा पाक