पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१५८

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१४७ स्मिक खर्च होता है जैसे कोई बीमार पड़ गया या कोई महमान श्रा गया या अचानक कहीं आना-जाना पड़ गया। तीसरा खास खर्च जैसे त्यौहार, भोज, उत्सव; शादी, गमी श्रादि । तीनों प्रकार के खर्च अपनी ग्रामदनी और हैसियत के अनुकूल करना चाहिए । सदेव खर्च के मामले में दृढ़ता और मर्यादा से काम लेना चाहिए । वरना धन का अपव्यय हो जायगा । देवा-देखी खर्च करना परले दर्जे की मूर्खता है। बचत एक बरकत है। वह चाहे जितनी कम हो पर होनी अवश्य चाहिए । जो स्त्रियाँ बचत करती हैं उनके पति निश्चिन्त सुख की नींद सोते हैं और जो स्त्रियाँ वचत नहीं कर सकती उनके पति कर्जदार रहते तथा सदेव चिन्ता और फिक्र में घुलते रहते हैं । ऐसे गृहस्थों को रोग कृत्यु श्रादि अचानक श्रा पड़ने पर भारी ग्राफत में पड़ना पड़ता इसलिये श्रापानी चाहे भी जितनी कम हो उसी में से कुछ न कुछ अवश्य बचाना चाहिए। मनु ने लिखा है कि-- सदाप्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्यषु दक्षया । सुसंस्कृतापस्करया व्हयेचामुक्तहस्तया । स्त्री को सदा प्रसन्न चित्त और घर के कामों में चतुर होना चाहिए। वह घर का सब सामान ठीक रखे और खर्च करने में हाथ साधे रहे। वास्तव में गृह प्रबन्ध और खर्च की जिम्मेवारी स्त्रियों पर ही होती है। परन्तु जब तक वे जमा खर्च रखने की रीति ठीक-ठीक न जानेंगी कुछ भी लाभ नहीं उठा सकतीं। सब से जरूरी बात तो यह है कि एक पाई का भी सौदा उधार न लिया जाय । जो लोग दूकानदारों से उधार सौदा लेते हैं उन्हे बहुत मंहगा और रही माल मिलता है। साथ ही उधार लेने वाले की