पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कहना। ४८-ग्रन्थ करना । ४२-रंगे हुए चावलों श्रादि से आँगन या तख्ते पर फूल-पत्तियाँ बनाना । ४३-इत्र श्रादि सुगन्ध द्रव्य बनाना । ४४-जादू के खेल व हाथ की सफाई के खेल करना । इनके सिवा और भी कलाएँ हैं- ४५- शरीर को स्वस्थ, नीरोग और सुन्दर, युवा बनाये रखने की भिन्न-भिन्न रीनियाँ और श्रौषध जानना । ४६-सुई और धागे की भाँति- भाँति की कारीगरी जानना । ४७-पहेलियाँ बनाना पढ़ने या कविता कहने का अभ्यास करना । ४६-काव्य समस्या पूर्ति करना। ५०-लकड़ी, धातु के भाँति-भाँति के काम करना । ११-घर बनाने के नकश बनाना । ५२-बाग़ लगाना । ५३-तैल मालिश करने और उबटन करने तथा अंग-मदन करने की विद्या सीखना । ५४-इशारों से बात करना । ५५-दूसरे देशों की भाषाएं जानना । ५६-शकुन और सामुद्रिक जानना। ५७-दूसरे के मन की बात जान लेना। ५८-काव्य का संपूर्ण ज्ञान होना । ५६-बड़े, बेडौल और फटे वस्त्रों को इस भाँति पहनना कि ये भरे न लगें और अंग ढक जाय । ६०-व्यायाम से शरीर को पुष्ट करना। ६१- काम-कला का ज्ञान रखना । ६२ शिशु-पालन जानना । ६३-पति का मन मोहने की विधि । ६४-इन्द्रजाल । ये ६४ कलाएं है जिनकी शिक्षा प्राचीन काल में बालिकाओं को मेलती थी और वे पृथ्वी पर रत्न के समान शोभित रहती थीं। शोक है के इन कलाओं का अाज हमें कुछ भी ज्ञान नहीं है। अध्याय दूसरा खान-पान और रहन-सहन यह बात भली भांति समझ लेना चाहिए कि खान-पान और रहन सहन के ऊपर ही जीवन का दारोमदार है। लड़कों की अपेक्षा कन्याओं