पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१७३

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-इन्द्रिय और मन को सदा वश में रखना । चटोर पन में न फंसना । वेश्या, पति निन्दा करने वाली, दुष्टा, कुटनी, ज्वारिन, टोनाडा करने वाली कर्कशा, निर्लज्जा, बकवादिनी स्त्री से सदा बचना। 14-पति के लिये सदा हृदय के द्वार खोल देना । कभी कुछ न छिपाना--कपट और झूट को पति और अपने बीच में न आने देना । पति की इच्छा के विरुद्ध कुछ काम न करना, उसके भीतरी कष्ट, चिन्ता, और मनोव्यथा का सदा ध्यान रखना । १६-रोग, विपत्ति, दरिद्रता, तथा कठिनाइयों में सदा साहसी बनी रहना। २०-यात्रा में सावधान रहना, अधिक न सोना, और अपरिचित स्थान में अकेली न जाना। २१--सदा पाप से डरना, सदा परमेश्वर को निकट जानना और अपना सच्चा सहायक समझना । सदैव नित्य कर्म संध्या वन्दन करना ।