पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/१७२

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१६१ १--कभी कडुश्रा न बोलना, कभी किसी की हसीन उडाना । कमी रूप, धन, सन्तान का घमण्ड न करना, कसम कभी न खाना, ज्यादा सहेलियाँ न पैदा करना । उलाहना किसी को न देना। किसी की निन्दा न करना । कभी घर की बुराई जबान पर न लाना । किसी चीज पर डाह न करना। १०--पड़ोसियों और रिश्तेदारों तथा पति के मित्रों की खातिरदारी, प्रेम और लगन से करना । किसी भूखे अभ्यागत को खाली न लौटाना। ११-अपने से बड़ों को प्रातःकाल उठकर प्रणाम करना, बजने वाले गहने न पहनना, इतने जोर से न बोलना कि बाहर आवाज सुनाई दे । व्यर्थ खिड़की, झरोकों पर से न झाँकना । गली में फेरी वालों को बुलाकर उनसे कोई चीज न खरीदना । १२--व्यर्थ किसी के घर न जाना, रात को किसी के बिस्तर पर या अपने पर किसी को न बैठने देना। अकारण अपरिचित पुरुष से बातें न करना । मनुष्यों की भीड़ में अकारण नहीं ही जाना । मेले टेले और भीड भड़क्के में जाने का शौक न करना । १३--गन्दी पुस्तकें न पढ़ना, गन्दी बातें न कहना सुनना और न गन्दे गीत गाना । ऐसी स्त्रियों की सोहबत भी त्याग देना। १४--पराई चीज कभी न माँगना । अावश्यकता वश मांगनी पड़े तो तुरन्त लौटा देना । अगर तुम्हारी कोई चीज कोई माँगे तो कभी इन्कार न करना। १५--रोगी की सेवा पवित्र काम समझना और कभी इससे ऊबना नहीं। १६--पदी अांखों का रखना, मयांदा प्रत्येक कार्य करना, कपड़ा ऐसा पहनना जिससे शरीर की रक्षा तथा मयांदा की भी रक्षा हो। ध्यान र