पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/२४

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१३ कर देनी चाहिए। फिर शरीर से बिलकुल चिकनाई छूट जाने के लिये अच्छी तरह स्नान करा देना चाहिए। कन्याओं को सदैव स्वच्छ, हलके, ढीले और अधिकतर सफेद रंग के वस्त्र पहिनाने चाहिये, रंगीन वस्त्र यदि हों तो बहुत हल्के रंग के हों। रेशमी वस्त्र कुंवारी लड़कियों के लिये अच्छे नहीं । सूती, श्रासानी से धुल सकने वाले वस्त्र ही उन्हें पहिनाना उचित है । रंगीन वस्त्रों का पहनना प्रायः चमड़ी और स्वास्थ्य को दृपित करना है । वर्षा ऋतु में रेशमी और सरदी में ऊनी वस्त्र पहनाये जा सकते हैं । ऊन और रेशम दोनों ही में सील को चूमने की शक्ति होती है। यदि रंगीन वस्त्र पहिनने ही श्रावश्यक हो तो इस प्रकार पहिनें- ग्रीष्म ऋतु में सफेद; बर्मान में सन्दली, नीला, पीला, हरा और सर्दियों में गुलाबी, लाल, बैंगनी, श्रादि । घाघरा पहनने का रिवाज बिलकुल बंद कर देना चाहिये । यह अनावश्यक, भारी और धुलने और साफ होने के बिलकुल ही अयोग्य है । तथा पेडू, ममाना और कुक्षि- प्रदेश पर भार डालता है। उसके वजन को संभालने के लिये कस कर बाँधना पड़ता है, जिससे कमर में उसका चिन्ह पड़ जाता है और पेट लटक ग्राता है। धोती या साड़ीही सयानी कन्याओं के लिये उत्तम पोशाक है। १० वर्ष से अधिक श्रायु की कन्याओं को ब्लाउज और साड़ी तथा छोटी कन्याओं को फराक, जो पिंडलियों तक नीचा हो, पहिनना चाहिए। कोहनी से नीचे की बाँह बिलकुल खुली रहें । मोजे किसी भी हालत में कुंवारी कन्याओं को न पहनाए जाएं । मोजे पहनने से रक्त के प्रवाह में अन्तर पढ़ता है । तथा समय सं प्रथम ही ऋतुकाल होने का भय रहता है। हर हालत में फराक या साड़ी के नीचे, चाहे कन्या कितनी ही कम आयु की हो जाँघिया अवश्य ही पहिनाना चाहिए । नंगा रहना कन्याओं के लिए खतरनाक और भद्दा मालुम होता है ।