पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/२३

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१२ होनी चाहिए और वह अधिक-से-अधिक सप्ताह में एक बार जरूर बदल दी जाय। हमेशा कन्या को इस भांति सुलायो कि उसका बामभाग उत्तर दिशा में रहे । अर्थात् पूर्व दिशा में उसके पैर रहें। सोने की जगह खुलासा हो । बरंडा या कोई बड़ा हवादार कमरा इस काम के लिये ठीक होगा । उन्हें सदैव बचपन से अकेला सोने की आदत डालनी चाहिए। कन्या को किसी दूसरी कन्या या लड़के के साथ एक शैय्या पर सोने देना निहायत बेहूदी बात है । ऐसी गलती कभी न करनी चाहिए । इससे जहां कन्या की शारीरिक और मानसिक बढ़ती रुक जाती है वहां अनेक बुरी श्रादतें पड़ जाने का भी भय है। सोते समय लड़कियां मुंह ढाँप कर या गुड़मुड़ होकर न सोवें। यह पादत यत्न करके छुड़ा देनी चाहिए। उन्हें खूब खुल कर स्वच्छन्दता से सोना चाहिए। जिससे फेफड़े भरपूर शुद्ध वायु खींच और फेंक सकें। जूड़ा बंधा रख कर सोने से रक्तवाहिनी धमनी पर दबाव पड़ता है इससे स्वप्न दीखते हैं । इसलिये बालों को खोल कर सोना चाहिए। प्रातःकाल उठते ही तत्काल शौच जाने की श्रादत बचपन ही से कन्या को डाल देनी चाहिए तथा कन्या पाखाने में देर तक न बैठी रहे इसकी ताकीद रखनी चाहिए । साथ ही श्राबदस्त के लिये ताजा, और बहुतसा पानी देना चाहिए और मल-द्वार को भली भांति शुद्ध करने की रीति माता को समझा देनी चाहिए- बल्कि बचपन ही से मल- द्वार को बहुत उत्तम रीति से साफ करने की आदत डाल देनी चाहिए। मल-द्वार के समान ही मूत्र द्वार भी इसी भांति स्नान के समय माता स्वयं सावधानी से साफ करे जिससे उसे श्रादत पड़ जाय । इस कार्य में संकोच करना सैंकड़ों रोगों को शरीर में घर करने देना है । इस काम के लिवे सदैव ताजा पानी ही काम में लाना चाहिए । जाड़ों में एक दिन छोड़ कर और गर्मियों में सप्ताह में एक बार सरसों के शुद्ध तेल की मालिश लड़की के शरीर पर खूब अच्छी तरह साफ