पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/४०

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इस तरह भोजन से शरीर बराबर पुष्ट होता रहता है । पानी सदा साफ पानी पीना चाहिये और साफ पानी से ही नहाना चाहिये। बहुत-सी बीमारियाँ जैसे हैजा, मोतीझा, नासूर और ग्वाल की बीमारियां खराब पानो ही से पैदा होती हैं, खराब पानी में नहाने में खुजली, दाद श्रादि पैदा होते हैं। साफ पानी--वह है जिसमें कोई रंग न हो, कोई गन्ध न हो, कोई स्वाद न हो। : राडा, हल्का और निर्मल जिसे पीकर दिल खुश हो जाय । ऐसा पानी हो तो उसे मिर्फ छान कर पीना चाहिए, अगर बीमारी फैली हुई हो तो पानी को सदा उबाल कर पीना चाहिये । गन्दा पानी, लिबलिबा, चिकना, पत्ते, काई और कीच से बिगड़ा हुअा, रिममें कीड़े ही, जिसका रंग और स्वाद बिगड़ गया हो, गाढा, दुर्गन्धिन बहुत दिनों का रग्वा हुअा, गंदला, छूने में बुरा लगनेवाला जल खरच होता है। जल शुद्ध करने की रीतियाँ १--पानी को उबाल-छान कर, मिट्टी के कोरे, धुले हुए घड़े में भर कर रग्व देना चाहिये। २-परमैगनेट अफ पोटाश ( लाल दवा) पानी में घोलने से उसके सब कीड़े मर जाते हैं, कुत्रों का पानी इसी से साफ किया जाता है । उसे बहुत थोड़ा डालना चाहिये । यह एक जहर है। ३-मामूली सफाई-इंट, पत्थर या बालू-रेत भाग में गर्म करके पानी में डालकर छान लेने से हो जाती है।