३७ जब से नई रोशनी का दौरदौरा हुआ है और मध्य श्रेणी की स्त्रियां भी फैशन के चंगुल में फंस गई हैं तब से पाक-विद्या का बिल्कुल ही पतन हो गया है । ऐसे घरों में प्रायः ऐसे गन्दे लड़के नौकर रखे जाते हैं जो अत्यन्त घिनोने, और अनाड़ी होते हैं, पर चूंकि वे झाडू, बुहारू, बर्तन, चौका सभी काम बेउज्र कर लेते हैं इसलिये एक ही नौकर रखने का सुभीता प्राप्त होने से उन्हें ज्यादा पसन्द किया जाता है। यदि कोई ऐसी ही असाधारण बात हो कि अवकाश ही न मिले तो बात दूसरी है, वरना जहां तक सम्भव हो प्रत्येक कन्या को पाक-विद्या का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, और यथा सम्भव उन्हें स्वयं रसोई बनाना चाहिए-चाहे वे रानी भी क्यों न हों। पाक-विद्या में ध्यान देने योग्य बातें -पाक-विद्या सीखने वाली में पवित्रता, धीरज, शान्ति और परिश्रम करने की आदत तथा निरालस्यता-ये गुण होने चाहिए। -उसे जानना चाहिये कि भोजन का उद्देश्य केवल सुधा निवृत्ति ही नहीं है। इसके द्वारा, दिन भर के परिश्रम करने से ह्रास हुई शक्तियों को पुनः प्राप्त भी करना होता है। अतः उसे इस पर विचार करना चाहिये कि कौन-कौन चीजें हमारे लिये उपयुक्त होंगी। ३-उसे अपने परिवार वालों के स्वास्थ्य और शारीरिक बल एवं प्रकृति का भी ज्ञान होना चाहिए और वैसे ही खाद्य-पदार्थ बनाने चाहिये जो उनके लिये स्वास्थ्य एवं बल-वर्द्धक हों। ४-उसे भिन्न-भिन्न ऋतुओं के स्वभाव, उनमें उत्पन्न होने वाले फल-मूल, साग-सञ्जी, उनके गुण-दोष तथा उन्हें भांति-भांति से पकाने की विधियां ज्ञात होनी चाहिए। उसे यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि बालक, वृद्ध रोगी, युवा और नौकर-च -चाकर इन सबके लिये उपयुक्त भोजन क्या हो सकता है।
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