पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/५१

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४० कई पदार्थों को दम देकर पकाया जाता है । पाँच लगाने में चतुराई यह है कि पदार्थ न कच्चा न रहे न जले, किन्तु ठीक पक जाय । १-पकाने के लिए पात्र भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होना गहिए । खट्टी चीजें मिट्टी के पात्र में या कलई किये हुए ताँबे या पीतल के पात्रों में पकाई जानी चाहिये । बिना कलई किए धातु के पात्रों में भोजन विषाक्त होने का भय रहता है । मिट्टी के पात्र को एक बार से अधिक काम में न लाना चाहिए । सिर्फ दूध की हाँडी बहुत दिन चल सकती है। अन्य पात्रों को भली भाँति धो-मांज कर खूब स्वच्छ कर रखना चाहिए। यदि मिट्टी के बर्तन को बारम्बार काम में लाना ही पड़े तो पाक हो चुकने पर उसे एक कपड़े से खूब रगड़ कर भीतरसे धो डालना चाहिये और पीछे मिट्टी पोत, आग पर सुखा कर खूटी पर टाँग देना चाहिये। ऐसा यदि न किया जाय तो उसमें जीवाणु उत्पन्न होने का भय रहेगा और उसमें दुर्गन्ध श्राने लगेगी। एल्युमिनियम का रिवाज गरीबों में बहुत चल गया है। जाहिरा और पर उसमें खट्टी चीजें बिगड़ती नहीं, पर वास्तव में खटाई में वह धुलने लगता है और उसका विष खाद्य पदार्थ में मिल जाता है। १०-जल भी भोजन का मुख्य अंग है । स्वास्थ्य और जीवन का आधार बहुत अंश तक जल पर भी निर्भर है। स्वच्छ शीतल जल रक्त को शुद्ध करने वाला, आहार को पचाने में सहायक, उत्तम पसीना और मूत्र लाने वाला है । सदैव उत्तम जल में प्राहार पकाया जाना चाहिए। और उत्तम तो यह है कि श्राहार में उपयोग करने से प्रथम जल को भलीभाँति उबाल लिया जाय । "-रसोई में जाने के लिए स्वच्छ शरीर और स्वच्छ वस्त्र का होना भी परम आवश्यक है । प्रायः स्त्रियाँ खास कर नौकरानी और रसोइये चीकट, घृणित और दुर्गन्धित कपड़े पहन कर रसोई में जाते हैं।