पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/५२

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जो धोती रसोई केलिए रक्खी होती है , वह महीनों में धुलती है। पंजाब में तो आम बौर पर यह रिवाज है कि स्त्रियाँ रसोई बना कर स्नान करती और स्वच्छ वस धारण करती हैं । यह सर्वथा अनुचित है, रसोई के लिये अत्यन्त स्वच्छ, श्वेत, धुले वस्त्र होने चाहिए । और अंगोछे प्रादि जो काम में लाये जाँय वे बिल्कुल धुले होने चाहिए। १२-भोजन सदा नियत समय पर तैयार करना चाहिए और देश, काल, जल, वायु और ऋतु का विचार कर तथा घर के लोगों की मिन- मित रुचि का ध्यान करके साग-सब्जी तथा अन्य भाँति-भाँति के पाक अदल-बदल कर बनाने चाहिए । एक ही चीज नित्य खाने से चित्त उब माता है । दुपहर के भोजन में चटनी, अचार, छाछ या दही, नींबू अदरक, पापड़, सहायक के तौर पर खाना चाहिए । शाम के भोजन में एकाध मिष्ठान्न, रायता, या दूध मुख्य सहायक भोजन के तौर पर होना चाहिए। १३-परोसना भी एक खास कला है । परोसना हर कोई नहीं जानता। साधारण चीजें भी परोसने की चतुराई से सुन्दर प्रतीत होती हैं । परोसनेमें सबसे प्रथम तो श्रासन और पात्रों तथा स्थान की स्वच्छता का विचार होना चाहिए । दूसरे, प्रत्येक पात्र में पृथक-पृथक खट्ट, मीठे, नमकीन, चरपरे पदार्थ परसने चाहिए। वे बिखरें नहीं, परस्पर मिलें भी नहीं, तीसरे, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसे क्या चीज । चौथी बात यह विचारने योग्य है कि कौन कितना खाता है तथा क्या-क्या जिन्स कितनी-कितनी है । यह सभी बातें विचार कर सावधानी तथा प्रसन्न-चित्त से भोजन परसना चाहिए। परसने के समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:- (१) परोसनेवाले के वस्त्र साफ हों। (२) कपड़े सावधानी से ठीक कर लिये जॉय कि दोनों हाथ घिरने पर उड़ उड़ कर गड़बड़ न करें। ज्यादा रुचिकर है