अति मात्रा में यदि शाक खाये जावेंगे तो ये हड्डियों तथा नेत्रों को कमजोर करेंगे । वर्ण, वीर्य, तथा बुद्धि को तीण करेंगे,बालों को सफेद करेंगे, स्मरण-शक्ति का नाश करेंगे। खास कर बसंत में शाकों में अधिक दोप हो जाता है इसलिए बसीत में हरे शाक कम खाने चाहिए। जैसा कि ऊपर कहा गया है कि तमाम शाक नेत्रों को हानि करते हैं--परन्तु पोई, बथुआ, चौलाई ये शाक हितकारी हैं। बथुए का शाक- बथुआ दो प्रकार का होता है । दोनों प्रकार का बथुवा मधुर, पाक में चरपरा, अग्नि को तेज करने वाला, पाचक रुचिकारक, हल्का और दस्तावर है । तिल्ली, रक्तपित्त, बवासीर, पेट के कीड़ों को नष्ट करता है। नेत्र रोगों में फायदेमन्द है । कफ की बीमारी वालों को सदा खाना चाहिए । लाल बथुया इससे भी उत्तम है । गोई का शाक- ठण्डा, चिकना, कफ कारक, वात तथा पित्त को नष्ट करने वाला, रुचि बढ़ाने वाला, लसदार,बालस्य और नींद लानेवाला, वीर्य- बद्धक तथा पथ्य है । लाल पोई, बडी पोई, और मूल पोई के गुण भी इसीके समान है। चौलाई हल्की, शीतल, रूखी, मल-मूत्र को लाने वाली, रुचिकारक, अग्नि- प्रदीपक, विषनाशक और खून की खराबी में फायदेमन्द है । बबासीर को जाभ पहुँचाती है। पालक- पालक वातकारक, ठण्डी, कफकारक, दस्तावर, भारी, मद, श्वास, पित्त, खून की गमी इन्हें दूर करती है । ज्वर में पथ्य है ।
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