पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ya शहतूत- भारी, स्वादिष्ट, शीतल, वातपित्त नाशक है। कच्चा शहतूत-- खट्टा, भारी, दस्तावर, गर्म और रक्तपित्त करने वाला है। प्रायः सभी शाकों में काष्ठौज होता है इसलिए शाकों को पकाकर खाना ही उत्तम है । बथुश्रा, मेथी, सोया इत्यादि हरे शाकों में कई प्रकार के उड़ने वाले तैल होते हैं । इसी कारण इन शाकों में अधिक गन्ध होती है । यद्यपि शाकों में पौष्टिक पदार्थ बहुत कम होते हैं तथापि शाक भोजन में अवश्य होने चाहिये; क्योंकि इनमें कई प्रकार के लवण होते हैं जो तन्दुरुस्ती के लिए बहुत अावश्यक हैं । सोया, कुल्फी, पालक, तोरई, परवल, धीया, कददू रोगी के लिए पथ्य हैं । गाजर का हलुश्रा अत्यन्त स्वादिष्ट और पुष्टिकर होता है । मूली चाहे कच्ची हो या पकाई हुई बवासीर के लिए बहुत ही मुफीद है । इसी प्रकार जमीकन्द भी बवासीर के लिए नायाब है। प्याज अत्यन्त कामोत्त. जक, पाचक तथा हैजे की अनमोल दवा है । नय के रोग में लहसुन बहुत फायदेमन्द है । खाने और लगाने दोनों रीति से काम में लाया जा सकता है । खासकर ग्रन्थिक्षय और हड्डी के क्षय में इसका इस्तेमाल करना चाहिए । गठिया वात और लकुवे की बीमारी में भी लहसुन बहुत. गुबकारी है। जब किसी कमजोर रोगी को दूध था और कोई भारी खुराक देना उचित नहीं हो तब शाकों का पतला झोल बनाकर देग बहुत गुणकारी होता है । इस काम के लिए तोरई, भालू, मूली, लौकी, सलगम अतिः उत्तम है। मीठे फलों में कर्बोज अधिकतर शर्करा के रूप में पाया जाता है। सब फलों में २ से १०० तक काष्ठौज होता है । आधी छटाँक नीबू के रस