पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/७८

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करने वाला, पेशाब रोकने वाला, और बुद्धिवर्द्धक है । काले तिल उत्तम हैं। -भात-- तृप्तिकारी, हल्का और रोचक है । दाल-- चाहे जिसकी हो भाड़ में भूनकर पकाई जाये तो हल्की हो जाती है। खिचड़ी- वीर्य कर्ता, काबिज और बल्य है । दस्तों के रोग में देनी चाहिए । नाहरी- घी में चावल, दाल या बड़ी भूनकर, जो खिचड़ी बनती है, वह साहरी कहलाती है । यह तृप्तिकारक और कामोत्तेजक है। खीर-- देर में पचने वाली, काबिज और बलकर्ता है । सैमई- धातुओं को तृप्ति करने वाली, काबिज और टूटे को जोड़ने वाली है, किन्तु बहुत नहीं खाई जावे । गुड़ की शकर डालने से शीघ्र पचती है। पुरी-- वीर्य की शक्ति को बढ़ाने वाली और कुछ काबिज होती है। हलुश्रा-- अनेक प्रकार का बनता है, सब प्रकार का हलुआ गरिष्ट है, मन्दाग्नि वाले को न खाना चाहिए। रोटी-- बलकारी और धातों को बढ़ाने वाली होती है।