७६ ताजाधी-- भोजन में स्वाद और रुचि को बढ़ाने वाला, नेत्रों को हितकारी, तृप्ति कारक और वीर्य को बढ़ाने वाला है। पुराना वृत-- तेज, दस्तावर, खट्टा, हल्का, कडा, उल्टी लाने वाला, जख्म को भरने वाला, योनिरोग, गुल्मरोग, शोथ, शृगी, मूला, खाँसी, बवासीर पीनस, कोढ़, उन्माद और रोगोत्पादक कीटाणुओं को नाश करने वाला है । दश वर्ष तक का घृत पुराना कहाता है। १०० वर्ष तक का कौम्भ और आगे का महाकृत । यह पुराना धृत--शुगी और पागलपन में जादू की तरह गुणकारी है । सन्निपात में, वाय भड़कने पर भी इसका चमत्कार देखने को मिलता है । बहुत ही मूल्यवान और दुर्लभ वस्तु है यह खाया नहीं जाता; पिच- कारी देने सँधने या मालिश के काम आता है । शत धौत घृत. पौ बार धोया घृत खाने में विप है, पर लगाने में अमृत; दाद, फोड़ा. फुन्सी में लगाया जाता है। रोगों पर १-आधा शीशी- ताजा वृत प्रातः सायं दोनों समय नाक से हुलास की तरह सँयो। सात दिन में श्रारास होगा। २--नकसीर में उपरोक्त नस्थ लाभ करेगा ३--सिर दर्द-- यदि गर्मी का हो तो ठण्डा, बादी का हो तो गर्म घृत मालिश करो।
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