पृष्ठ:हमारी पुत्रियाँ कैसी हों.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७५ नीचे उतार कर ठण्डा होने दो हिलाओ मत, वरना पेंदे की मैल ऊपर उठ श्रायेगी। इसके बाद साफ बर्तन में छान कर चिकनी हाँडी-चौड़े मुंह की बोतल या टीन के कनस्तर में भर दो । ज्यादा तपाने से घी का सौंधापन नष्ट हो जाता है। कम तपाने से वह खट्टा रह जाता है और शीघ्र सड़ जाता है- -पर उत्तम घृत वर्षों नहीं बिगड़ता । बाजारू घृत-- प्रायः खराब, सड़ा, गन्दा, और मिलावटी होता है, किसी में जानवरों की चबी मिली होती है, किसी में मिट्टी का साफ किया हुआ तेल । इन वाहियात घृतों के खाने से धर्म तो नष्ट होता ही है स्वास्थ्य भी नष्ट होता है। ये घृत, अरुचि, दाह दस्त, हैजा और अन्य तरह-तरह के रोग पैदा कर देते हैं । इसलिए उत्तम गौ का देखा-भाला स्वच्छ घृत लेना, वरना रूखी रोटी खाना । सुधारना-- घी सड़ा हुअा या दुर्गन्वित हो तो ऐसा करो कि उसे देगची या कढ़ाई में डालो और जरा गर्म करो, जब ढीला हो जाए तो उसमें एक गिलास दूध कच्चा, एक चम्मच नमक, थोड़ी लौंग और नीबू की पत्तियाँ डाल दो। अक्छी तरह प्रौटा कर उतार लो, यह घृत ताजे के समान सुगन्धित स्वच्छ और साफ हो जाएगा। गुण गाय का घी-- ठण्टा, देर में पचने वाला, मीठा, अग्नि को बढ़ाने वाला, रसायन, रुचिकर, नेत्रों को हितकारी । शरीर बढ़ाने वाला, सुन्दरता ज और बुद्धि को बढ़ाने वाला, वीर्य वर्द्धक, स्वर को सुधारने वाल, तेहृदय को हितकारी और क्षय में बल कारी है।