पानी में दाल को भिगो दो । जव भली भाँती फूल जाय तब दोनों हाथों से मसल-मसल कर भली भाँति छिलका अलग कर लो। पीछे पानी छोड़ दो। इससे दाल नीचे बैठ जायगी और पानी के ऊपर छिलके तैर जावेंगे। तब धीरे से पानी निथार दो पानी के साथ ही छिलके भी बह जावेंगे । इसी प्रकार कई बार करने से दाल बिल्कुल साफ हो जावेगी । उसे धूप में सुखा कर रख लो। दूसरी विधि यह है कि खड़ी उर्द या मूंग को धूप में भली भाँति सुखा लो फिर सेर दाल में १ तोला के हिसाव से तेल पानी में मिला कर उसे दाल में खूब मसल दो। फिर ढक कर रात भर रखी रहने दो । सवेरे फिर धूप में डालो। खूब सूखने-पर दल लो और ओखली में छाँट कर सूप से फटक दो। सब छिलका पृथक् पृथक् हो जायगा । इस काम में होशियारी की बात यही है। कि दाले मोयने, दलने और छाँटने में टूदें नहीं। दाल चाहे जिसकी भी हो वह इस भाँति बनाई जाय कि उसे भली भाँति साफ कर लो । ज़रा सा भी कचरा मैल उसमें न रहे। जब दाल चनाने बैठो तब उसे फिर से देख-भाल कर २-३ पानी से खूब धो डालो। फिर देगची में पानी गर्म करो तव उस में दाल छोड़ो। एक ही बार में पूरा पानी डाल देना चाहिए। दुवारा पानी डालने से दाल का स्वाद खराब हो जाता है। नमक आदि का अन्दाज भी बिगड़ जाता है। यदि किसी कारणवश दुवारा पानी डालना ही हों तो कच्चा कदापि न डाला जाय। हमेशा गर्म पानी डालना चाहिये। अरहर की दाल- । अरहर की चुगी-बीनी दाल आध सेर, घी अाध पाव, दही १०७
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