सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

'माता बनना है, वच्चा माता के मांस रक्त से बनता है, माता की आत्मा वच्चे में प्राप्यायित होती है। इसलिये..कन्याओं के लालन-पालन में बड़ी भारी खबरगीरी रखने की जरूरत है। खान-पान और रहन-सहन का प्रबन्ध करने के समय इन बातों का ध्यान करना बहुत आवश्यक है। १-उनका शरीर सुन्दर, कोमल, लचीला और सुडौल बने, चमड़ी साफ, चमकदार, चिकनी और उज्ज्वल रहे। २-केश, भौं, दाँत, नाखून, आँखे और दृष्टि साफ, पारदर्शी और उज्ज्वल रहे। ३-कण्ठ स्वर महीन, सुरीला, लचकदार हो, श्वास और पसीना सुगन्धित हो। ४-समस्त चेष्टाएँ शिष्टाचार और मर्यादा के अन्दर हों। ५-नित्य कर्म की आदतें, नियमित, संयत और देश काल तथा परिस्थिति के अनुकूल हों। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि ये पांचों बातें खान-पान और रहन-सहन से ही सम्बन्ध रखती हैं। 7 } भोजन -कन्याओं को वचपन ही से नर्म, हलका, साफ और सुथरा भोजन दिया जाय । ज्यों ही वे बैठने लगे उन्हें अपने हाथ से चम्मच द्वारा खाने देने का अभ्यास कराया जाय । ३ वर्ष की कन्या होने पर उसे दिन भर में ३ वार दूध भात, २ वार फलों का रस, और एक बार थोड़ी रोटी देना चाहिये। भोजन के समय की नियमितता का अभी से कड़ाई से पालन करना ७