सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मर्दन करने की विद्या सीखना । ५४-इशारों से बातें करना।५५- दूसरे देशों की भाषाएँ जानना ।५६-शकुन और सामुद्रिक जानना। ५७-दूसरे के मन की बात को जान लेना । ५८-काव्यं का संपूर्ण ज्ञान होना । ५९-बड़े, बेडौल और फटे वस्त्रों को इस भाँति पह- नना कि वे भद्दे न लगें और अंग ढक जाय । ६०-व्यायाम से शरीर को पुष्ट करना । ६१-काम कला का ज्ञान रखना । ६२- शिशु पालन जानना । ६३-पति का मन मोहने की विधि । ६४- इन्द्रजाल। ये ६४ कलाएँ है जिनकी शिक्षा प्राचीन काल में बालिकाओं को मिलती थी और वे पृथ्वी पर रत्न के समान शोभित रहती थीं। शोक है कि इन कलाओं का आज कुछ भी ज्ञान हमें नहीं है। 7

अध्याय दूसरा खान-पान और रहन-सहन यह बात भली भाँति समझ लेनी चाहिये कि खान-पान और रहन-सहन के ऊपर ही जीवन का दार-मदार है। लड़कों की अपेक्षा कन्याओं को अधिक गम्भीर, नाजुक और कठिन जीवन व्यतीत करना होता है। माता-पिता के घर में प्रायः उनका जीवन अन्धकार में होता है। कौन कह सकता है कि विवाह के बाद वे रानी बन जावेंगी या उन्हें दरिद्रता में जीवन व्यतीत करना होगा। दूसरे सब से महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उन्हें