खर्च, नौकरों के वेतन और चिराग-बत्ती का खर्च । आदि आदि दूसरा आकस्मिक खर्च होता है जैसे कोई बीमार पड़ गया या कोई महमान आ गया या अचानक कहीं आना-जाना पड़ गया। तीसरा खास खर्च जैसे त्यौहार, भोज, उत्सव, शादी गमी आदि। तीनों प्रकार के खर्च अपनी आमदनी और हैसियत के अनु- कूल देख लेने चाहिए। सदैव ही खर्च के मामले में दृढ़ता और मर्यादा से काम लेना चाहिए। वरना धन का अपव्यय हो जायगा। देखा-देखी खर्च करना परले दर्जे की मुर्खता है। बचत एक बरकत है । वह चाहे भी जितनी कम हो अवश्य होनी चाहिए । जो स्त्रियाँ बचत करती हैं उनके पति निश्चिन्त सुख की नींद सोते हैं और जो स्त्रियाँ बचत नहीं कर सकतीं। उनके पति क़र्ज़ दार रहते तथा सदैव चिन्ता और फिक्र में घुलते रहते हैं। ऐसे गृहस्थों को रोग मृत्यु आदि अचानक आ पड़ने पर भारी आफ़त में पड़ना पड़ता है। इसलिये आमदनी चाहे भी जितनी कम हो उसी में से कुछ न कुछ अवश्य बचाना चाहिए। मनु ने लिखा है कि- सदाप्रहृष्टया भाव्यं गृहकार्येषु दक्षया । सुसंस्कृतोपस्करया व्हयेचामुक्तहस्तया । स्त्री को सदा प्रसन्न चित्त और घरके कामों में चतुर होना चाहिए । वह घर का सब सामान ठीक रखे और खर्च करने में हाथ साधे रहे। वास्तव में गृह प्रवन्ध और खर्च की जिम्मेवारी स्त्रियों पर १७०
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