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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१९२

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दीनबन्धु दुःख हर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ी तेरे ॥ जय० ॥ विषय विकार हटाओ, पाप हरो देवा । श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥ जय० ॥ भैरवी चन्देमातरम् । सुजलाम् सुफलाम् मलयज शीतलाम्, शस्य श्यामलाम्-मातरम् । शुभ्रज्योत्स्नां पुलकित यामिनीम्, फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्, सुहासिनी सुमधुर भापिणीम्, सुखदाम्-वरदाम्-मातरम् ॥ वन्दे०॥ त्रिंशकोटि कंठ-कलकल निनाद कराले, द्वित्रिशकोटि भुजै धृत खर करवाले। के बोले मा तुमि अवले। बहुवलधारिणीम्, नमामि तारिणीम्, रिपुदलवारिणीम्, मातरम् ॥ वन्दे० ॥ राग-भूपाली अयि भुवन मन मोहिनी! अयि निर्मल सूर्य करोज्ज्वल धरिणी! जनक जननी जननी! नीलसिन्तु जलधौत चरणतल । अनिल विकम्पित श्यामल अंचल । १७९