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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/१९१

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अध्याय नौवां कन्या-गीत प्रभाती भोर भयो पक्षीगण वोले, उठकर प्रभु गुण गाओरी । लखि प्रभात प्रकृति की शोभा, बार बार हुलसामोरी। प्रभु की दया सुमिर निज मन में,सरल भाव उपजाओरी ॥टे॥ ब्रह्मरूप सागर में मन को, बारम्बार हुवाओरी। निर्मल शीतल लहरें ले ले, आतप ताप बुझाओरी ॥ आरती जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे॥टेक॥ भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे। जो ध्यावे फल पावे, दुख विनशे मन का ।। सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तनका ॥ जय० ॥ मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किस की। तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी ॥ जय० ॥ तुम पूरण परमातमा, तुम अन्तरयामी। परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी ॥ जय० ॥ म तुम करुणा के सागर, तुम पालन कर्ता। मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता ॥ जय० ॥ तुम हो एक अगोचर, सव के प्राण पति। किस विधि मिलूं गुसाई, तुमको मैं कुमति ॥ जय०॥