कमर, पढ़े, जांघ और धड़ सुगठित होंगे। रक्त का प्रवाह ठीक रहेगा। ६-ज़मीन पर चित्त लेट जाओ। पैरों तथा हाथों को ज़मीन पर लगा दो। दोनों पैरों को पास-पास सटा कर रक्खो और हाथों को सीधे ज़मीन पर नितम्बों के पास रक्खो। फिर दोनों पैरों को एक साथ सटे हुए धीरे-धीरे उठाओ। यहां तक कि कन्धे और सिर को छोड़ तमाम शरीर धरती से उठ जाए । कुछ देर इसी भांति रुके रहो। फिर धीरे २ असली हालत में आ जाओ । अव जोर की सांस भर कर सिर और हाथों को उठाओ, और झुकते हुए पैरों के अंगूठे पकड़ लो, फिर पैरों को जितना सम्भव हो, सीधा तानों, और तब घुटनों को सिर से लगाने की बेष्टा करो। यह व्यायाम गर्भवती स्त्री न करे । इससे प पेट, और पांवों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यकृत और प्लीहा की शुद्धि भी होती है। अग्नि दीप्त होती है । इस अभ्यास में पेट को खूब भीतर खोंचना चाहिए । कन्याएँ इस व्यायाम को खूब कर सकती हैं । यह सिर दर्द का उत्तम प्रतिकार है। इसका अभ्यास थोड़ा-थोड़ा करना चाहिए । १०-सीधी खड़ी हो जाओ। शरीर सीधा रहे। अब इस भाँति भुको कि सीना सीधा रहे। घुटने भी न मुड़े। सारा भार उदर और रीढ़ की हड्डी पर पड़े । धीरे-धीरे हाथ पैरों के पास ज़मीन पर टेक दो, सिर दोनों हाथों के बीच में रहे। और नाक घुटनों में से छू जाए । धीरे-धीरे अभ्यास से ऐसा हो जाएगा । इस क्रिया में प्राणायाम करना आवश्यक है। ११-अब यहां वायां पांव पीछे की ओर जितना संभव हो, १८३
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