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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/२७

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दायित्वों से मुक्त हो जावेंगी। परन्तु इतना होने पर भी वे लोग कौमार्य व्रत का, विद्यार्थी जीवन रहते पूर्णतया पालन करें, पवित्र मित्रवत् रहें, परस्पर सहायता, सहयोग करें––परन्तु पति पत्नीवत् न रहें। यह व्रत भङ्ग हुआ कि उच्च शिक्षा प्राप्ति का महत्व भंग हुआ।

हाँ, कुछ ऐसी कन्याएँ जो अपनी परिस्थिति और अपने भविष्य पर विचार करने की योग्यता रखती हों, और विवाहित जीवन को आजीवन या कुछ काल के लिए नापसन्द करती हों उन्हें अवश्य ही अपने स्वतंत्र और पवित्र जीवन का विकास करते हुए कौमार्य व्रत में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।

अध्याय चौथा

तमीज़ और सलीका

आपकी पुत्री चाहे भी जितनी मूर्खा और बदसूरत हो––यदि उसमें तमीज़ और सलीक़ा है तो वह अपने तमाम ऐबों को ढक लेगी। और यदि उसमें तमीज़ और सलीका नहीं है तो वह हज़ार सुन्दरी और शिक्षिता होने पर भी ससुराल में नेक नाम और प्रिय नहीं हो सकती। यदि सुन्दर और शिक्षिता कन्याएँ तमीज़ और सलीका सीखी हुई हो तो वें स्त्रियाँ नहीं देवी की उपमा को धारण कर सकती हैं।

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