समय नष्ट होगा। स्वयं माता पिता या अध्यापक द्वारा उन्हें घर पर ही तीसरी श्रेणी तक की पढ़ाई खतम करा दी जाय। यदि अच्छी तरह चेष्टा की जाय तो साधारण बुद्धि की भी कन्या स्कूल की अपेक्षा आधा समय पढ़ने में खर्च करके १ वर्ष में इतनी शिक्षा समाप्त करलेगी। साथ ही घर के और बहुत से काम भी सीखती रहेगी।
यदि कन्याओं को उच्च शिक्षा नहीं देनी है और १६ वर्ष की आयु के लगभग उनका विवाह कर देना है तो उन्हें ८ वीं श्रेणी तक की शिक्षा दिलाकर स्कूल से पृथक कर लेना चाहिए। और अब घर पर उन्हें चुनी हुई उत्तम पुस्तकें जिनमें कुछ धर्म, कुछ विज्ञान, धात्रीशिक्षा, चिकित्सा सम्बन्धी पुस्तकें होनी चाहिए। इस समय में वह अधिक समय, गायन, वाद्य, गृहप्रबन्धन, सुई, कसीदा, भोजन आदि कार्यों में लगावे।
इस अवसर में उन्हें ड्राइंग, चित्रकला, और नक्शे नवीसी का भी काम सीखना चाहिए। यदि इसमें उनकी खास रुचि हो तो उन्हें विशेष शिक्षा दी जाय।
उच्च शिक्षा जिन कन्याओं को दी जाय उन्हें मैट्रिक तक तो घर ही में रहना अनिवार्य होना चाहिए। कालेज जाने पर यदि आवश्यक हो तो उन्हें छात्रावास में रखा जा सकता है। परन्तु इस सम्बन्ध में हमारी अनुभवपूर्ण एक सम्मति है कि ऐसी कन्याओं का एन्ट्रेन्स की परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर विवाह कर दिया जाए। वर भी छात्र होना चाहिए। फिर वर वधू एक दूसरे के तत्वाभिधान में कालेज में शिक्षा प्राप्त करें। इस योजना में बहुत से सुभीते हैं जो हम भारतीयों की परिस्थितियों के अनुकूल हैं। ऐसी योजना से कन्याएँ बहुतसी कठिनाइयों और नाजुक कुुअवसरों से बच जावेंगी और माता पिता बहुत से उत्तर-
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