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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/३१

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तीसरा सलीक़ा बातचीत करने का होना चाहिए। हँसकर बातें करना बुरा नहीं, पर बात बात पर दाँत दिखा देना, बातें करते करते इतना हँसना कि बात चीत ही बन्द हो जाए, अच्छा नहीं। खूब जोर से भी चाहे जब हँस पड़ना बुरा है। वास्तव में हँसने की बात पर ही हँसना शोभा देता है। हँसी के मौके पर भी ना हँसना फूूहड़पन है। मन्दमुस्कान एक प्यारी वस्तु है। उसमें दाँतो के दर्शन न हो। वह दूसरे दर्जे की मुस्कान है और उतनी मुस्कान वहीं होनी चाहिए जहाँ कुछ घनिष्ठता हो। चबर चबर करके जवान चलाए जाना, या इतरा कर, हलका कर अथवा हबर हबर करके बोलना बहुत बुरी आदतें है। बीच बीच में जिद करना, नाक से बोलना, मिनमिनाना ठीक नहीं, बात को साफ, शुद्ध

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