' . करती हैं । यह विद्या बहुत कठिन है परन्तु सीखने से अवश्य आती है। इस विद्या का विज्ञान से बहुत सम्बन्ध है । जिस-जिस देश की जैसी-जैसी जलवायु होती है उस उस देश के भोजन भी उसके अनुकूल होते हैं, भोजन के आधार पर ही शरीर की गठन, शक्ति, बलवीर्य और स्वास्थ्य एवं सौन्दर्य स्थिर रहता है। भारतवर्ष में यों तो सर्दी, गर्मी, वर्षा ये तीन ऋतु प्रधान हैं, परन्तु देखा जाय तो भारत गर्म देश है। इसलिये जो स्त्रियाँ पाक विद्या में निपुण होना चाहती हैं उन्हें इस बात का विचार करना चाहिये कि किस ऋतु में कैसा भोजन बनाया जाय, क्या क्या मसाले इस्तेमाल किये जाय, खास-खास दाल-शाक-पाक खास रीति से बनाये जाँय, उन्हें ऋतु के लिहाज से देर तक किस भाँति रक्खा जाय । ये सारी बातें पाक विद्या से सम्बन्ध रखती हैं। पाक विद्या की जान 'सुरुचि है। पदार्थ चाहे घटिया हो या बढ़िया यदि वह सुरुचि सम्पन्न है तो ठीक, वरना किसी भी काम का नहीं। पाक विद्या का महत्व दो वातों पर निर्भर है पहला खाद्य पदार्थ रुचिकर बन जाय, दूसरे-वह सुपाच्य वन जाय । ये ही दो गुण हैं जिनके आधार पर खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य वर्धक और जीवन दाता हो सकता है। इस में कोई सन्देह नहीं कि उत्तम भोजन ही के आधार पर स्वास्थ्य और जीवन निर्भर है, और ये दोनों ऐसी चीजे हैं कि जिनके मूल्य बादशाहतों से भी ज्यादा कीमती हैं। इसीलिये कहते हैं कि जो कन्या पाक विद्या को जानती है वह स्त्री नहीं साक्षात् अन्नपूर्णा देवी बन जाती है। अमीर घरानों में यह रिवाज़ सा पड़ गया है कि प्रायः रसोइये' या महाराजिन भोजन बनाया करते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण
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