अरहर, चना, मटर आदि चैत, बैसाख में संग्रह करने चाहिए । ज्वार, बाजरा, मूंग, उर्द आदि अगहन पूस में । चावल माघ पूस में खरीदना अच्छा है । घृत प्रति सप्ताह या प्रति माल लेना। सब्जी और फल नित्य । -पाकशाला और भण्डार स्वच्छ और हवादार हों। वहाँ मक्खियाँ कदापि न जाने पावें । इसलिए किवाड़ों में जाली लगवा दी जाय । प्रत्येक तीसरे मास में उस में, रामरज पोत दी जाय । रसोई घर पर छप्पर है तो प्रति सप्ताह उसकी राख, धूल, मकड़ी, जाला झाड़ देना चाहिये। ४-भण्डार और रसोई घर में बर्तन तथा सामान इस तरह सजाकर सफाई से रखा जाय कि देखते ही चित्त प्रसन्न हो जाय । उनका रखने का ढंग ऐसा हो कि आवश्यक, चीजें भट मिल जाँय । वस्तुओं को रखने को मिट्टी, पत्थर, काँच चीनी या धातु के वर्तन, वाँस या तीलियों के बने टोकरे, जैसी सुविधा हो उसके अनुसार संग्रह होने चाहिए। . ५-चूहे, चींटी, घुन, दीमक भण्डार घर के दुश्मन होते हैं। इनसे सदा होशियार रहो । गेहूँ में यदि उपलों की राख मिला दी जाय तो उसमें धुन नहीं लगेगा। रीठे की गुठली निकाल कर उसमें पारा भर कर रीठे का मुँह बन्द कर गेहूँ के ढेर में रखने से भी उसमें कीड़ा नहीं लगेगा। आमचूर, इमली श्रादि यदि साल भर को भरकर रक्खी जाँय तो उन्हें समय समय पर धूप देना ज़रूरी है। खास कर वर्षा ऋतु में इसकी बड़ी जरूरत है। ६-पाक विद्या में ईंधन भी एक खास वस्तु है। ईधन का भोजन के स्वाद और गुणों पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिये
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