सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दूसरे, प्रत्येक पात्र में पृथक पृथक खट्टे, मीठे, नमकीन, चर- परे पदार्थ परसने चाहिएँ । वे विखरें नहीं, परस्पर मिलें भी नहीं, तीसरे, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसे क्या चीज़ ज्यादा रुचिकर है। चौथी यह बात विचारने योग्य है कि कौन कितना खाता है तथा क्या क्या जिन्स कितनी कितनी हैं। यह सभी बातें विचार कर सावधानी तथा प्रसन्न चित्त से भोजन परसना चाहिए। परसने के समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए- (१) परोसनेवाले के वस्त्र साफ हों। (२) कपड़े सावधानी से ठीक कर लिये जॉय कि दोनों हाथ घिरने पर उड़ २ कर गड़- बड़े न करें। (३) धीरज और बुद्धिमानी से सब चीजें सजाकर परोसी जाय । (४) कोई चीज हाथ से न परोसी जाय । (५) एक चीज का चम्मच दूसरी में न डाला जाय। (६) चम्मच अवश्य रख दी जाय (७) परोसने के वाद सव की थाली में दृष्टि डालकर देख लिया जाय कि कोई चीज कहीं रह तो नहीं गई । (८) परो- सने के बाद ऐसे स्थान पर खड़ा रहे कि सब पर पूर्ण दृष्टि रहे। (९) इस बात का पूरा ध्यान रक्खे कि न तो कोई भूखा ही उठे और न कोई जिन्स खराब ही हो। सबसे अधिक सावधानी वालकों की होनी चाहिए (१०) हाथ धुलाते समय छींटे' न पड़ें, तथा गन्दगी न विखरे इसका ध्यान रखना चाहिए। १३-भोजन में ६ रस होते हैं- [१] खट्टा [२] मीठा [३] नम- कीन [४] चरपरा [५] कडा [६] कसैला। खट्टे का पाक खट्टा, मीठे और नमकीन का मीठा, चरपरे, का चरपरा, कहुए और कलैले का ,कदुग्रा होता है। भोजन में प्रथम मीठा फिर नमकीन, पीछे चरपरा, इसके बाद कहा और