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पहिला अध्याय कन्या का महत्व : सन्तान परमेश्वर की एक उत्तम धरोहर है। उसमें कन्या सर्व श्रेष्ठ है। कन्या मानवीय जीवन का कोमल और अति पवित्र अवतार है। जिस घर में कन्या जन्म लेती है वह घर धन्य होता है। . परन्तु आम तौरसे कन्या के जन्म होते ही लोग मुंह लटका लेते हैं। और ऐसा प्रकट करते हैं कि मानो कोई भारी दुर्घटना होगई हो। यह अत्यंत लज्जा की बात है। प्रायः हिन्दू घरों में कन्यायें पराई चीज़ समझी जाती हैं और विवाह तक वे उपेक्षा से रहती हैं। फिर जल्द से जल्द उनका विवाह कर दिया जाता है। जो लोग कन्या को प्यार भी करते हैं वे भी कन्या को उच्च शिक्षा देने की ओर कुछ भी ध्यान नहीं देते।हाँ, विवाह संबंधी वाते, और उद्योग वे बड़े चाव से करते हैं । कन्याओं के प्रति अच्छे माता-पिता भी सबसे बड़ा एक यही कर्तव्य समझते हैं कि उनका अच्छा घर वर देख, विवाह कर दिया जाय और वे गहनों और कपड़ों से लदी रहें। परंतु वास्तव में इस प्रकार के कार्य एक दर्जे तक पाप हैं। छोटी-छोटी और अबोध बालिकाओं के सामने उनके व्याह की चर्चा करना, किसी बालक को उनका पति कह कर पुकारना, सास