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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/८४

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गेहूँ- जिन प्रान्तों में चावल का प्रचार नहीं; वहाँ गेहूँ का आटाही सब से अधिक मुख्य है। बिना छने गेहूँ के आटे में छने हुए आटे और मैदा की अपेक्षा पोषक तत्त्व अधिक है। गेहूँ के छिलके में पोषक तत्त्व और लवण दोनों बड़े परिमाण में होते हैं । जो लोग बहुत बारीक चलनी में आटा छान कर खाते हैं, या मैदा को बहुत पुष्टिकारी गिजा समझते हैं, वे कितनी भूल करते हैं, यह पाठक स्वयं समझ सकेंगे। एक बात और ध्यान में रखने योग्य है, कि अन्न वर्ग में कार्बोज "श्वेत सार" [ नशास्ता] की शकल में पाया जाता है। जौ की रोटियाँ भी कई प्रान्तों में खाई जाती हैं । जयपुर इलाके में बड़े-बड़े अमीर परिवार भी जौ खाते हैं, परन्तु इसकी रोटियाँ आसानी से नहीं बनती, क्योंकि इसमें लोच कम होता है। परन्तु जो रोगियों के लिए खास कर भीतरी बीमारियों और भीतरी अवयवों के सूजन में बहुत उपयोगी है। अन्य धान्य- बाजरा, ज्वार, मका, और जौ चने का मिस्सा आटा-प्रायः गरीबों का खाना है। मारवाड़ में ज्वार, वाजरा, बहुत खाया जाता है। यू०पी० के पूर्वी जिलों में मक्का गरीबों का प्रधान भोजन है। बाजरा गर्म और दस्तावर है। सर्दी के दिनों में यूपी में बाजरे की रोटी और खिचड़ी बहुतायत से खाई जाती है। वाजरा और ज्वार जब अमीर लोग खाते हैं तो घी का उपयोग ) ज्यादा करते हैं। ७३