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पृष्ठ:हमारी पुत्रियां कैसी हों.djvu/९८

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बना लेना चाहिये । प्रायः रविवार के दिन देहात में घृत बनाते हैं और सोमवार को बाज़ार में बेचने आते हैं। सोमवार को सब बाज़ारों में प्रायः ताजा घृत मिल जाता है। -" घृत बनाना- एक साफ कढ़ाई या कलईदार देगची में सब मक्खन भर कर मन्दी-मन्दी कोयलों की आँच पर रक्खो और धीरे-धीरे तपने दो। पहिले कुछ मैली आवेगी फिर कुछ गाढ़ी होगी, पीछे अन्दर कुछ सफेद-सफेद · धुंधला-सा दिखाई देगा। थोड़ी देर वाद.साफ घी पतला ऊपर आवेगा और छाछ मैली सव ,पेंदी में जम जावेगी। तिस पीछे बबूले उठेंगे और घृत सनसनायेगा । अब घृत तैयार है। उसे नीचे उतार कर ठण्डा होने दो, हिलाओ मत, वरना पैदे की मैल ऊपर उठ आयगी, तब साफ वर्तन में छान कर चिकनी हाँडी-चौड़े मुँह की बोतल या टीन के कनस्तर में भर दो। ज्यादा तपाने से घी का सोंधापन नष्ट हो जाता है। कम तपाने से वह खट्टा रह जाता है और शीघ्र सड़ जाता है-पर ठीक उत्तम घृत वो नहीं विगड़ता। बाजारू घृत- प्रायः खराव, सड़ा, गन्दा, और मिलावटीं होता है, किसी में जानवरों की चर्बी मिली होती है, किसी में मिट्टी का साफ किया हुआ तेल । इन'वाहियात घृतों के खाने से धर्म तो नष्ट होता है ही । स्वास्थ्य भी नष्ट होता है। ये घृत, अरुचि, दाह दस्त, हैजा और तरह-तरह के रोग पैदा कर देते हैं। इसलिए उत्तम गौ का देखा-भाला स्वच्छ घृत लेना, वरना रूखी रोटी खाना।