पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१०

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विषय बनाया गया है और जो अभौतक प्रकारामें नहीं था।" इस प्रकार यह सपलम नवोगजीने पायमी विविधता और गहरणो छटा प्रस्तुत करता है प्रलयगी गर्जना और शोष-गनको चुनौती, प्रणयमा आदान और दान प्रतिदान, वियोगको आकुल व्यथा और मनुहारकी माधुरी, चितनी गहराई और रहस्यको दार्शनिक अभिव्यक्ति, जीपनका एमाण और मृत्युका धरण । इम इतित्वकी महत्ताके परियेश्यमै मायने जीवनकी सफलता-असफलगाका प्रश्न गौण है। फिर सफलतारा मान- दण्डपा जन 'नयी सफरसा' क गज में हग निररे असपर लासानी, जग मार उहाका खासा, हम मी मुपकाये मनाने । इस सवेदनशील औषष्टदानीको प्रतीति भो कि जीवन देना ही देना माग है, मनचाहा पाना गव सम्भव ही नही तो उसकी तृष्णा व्या है पने दो गाने में पुराने बारी मेरी प्यास नहीं पार वार का कहने कासमय नहा, अभ्यास नाही। स्वर्गीय नयौनसरीये प्रति गानपीठको यह विना प्रदागति विन्ति है। -श्री जग हम पिपगायो जनम