पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१३५

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हती 7 जन्म छो? किन्तु यही इन प रिपुओ या उत्पादक है कौन कौन मनाता रहता है इन पडयन्त्रो की इन सतानी के भी प्रजनक अहो जगत्पति, यया तुम हो। सच कहना गया इसी तरह तुम प्रकृति-वध के कुकुम हो। गुरुजग कहते हैं कि रज-तम से प्रकटे है री माया, यह विक्ट बसेडा क्या सब तेरा ही है री? त्रिगुणात्मिका प्रकृति का सूष्टा क्या कोई है या फि नहीं? क्या यह भी है एक स्वय-भू जिसका अन्त न आदि कही? एक स्यय-भू बनी प्रकृति यह स्वयमूत फिर कैसे कह हूँ कि तुम्ही तो प्रकृति-भाल के कुकुम हो? सकल वस्तुओं के अणु अणु मे सकर्षण होता प्रकृति-पुरुप मै यहा सदा यह सषपण होता रहता, 11 हम विषपायी जनम के