पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१३४

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रोति नयी मै देम रहा हूँ पूत तपोद्भव तव जग देखो मंडराता रहता है मलिन भाव अभिनव जग में, इस पर भी किसका साहस है जो पह कह 1 हो तुम हो? कौन कहेगा कि तुम प्रकृति के चिर सुहाग के वृकुम हो। पाप-पुण्य के ये अवगुण-गुण बन्धन किसकी कृतियां हैं? दुखित हृदय की शान्ति निकन्दन रास्मृत्तियां किसने मकलकित-सफ्लकित मर्यादा - रेसा खीची? यह विष वेल, वाहो, विसने, हिय आंगन में बोयो-सोची? पाप-भाव भी आदि के प्रेरक भी क्या तुम हो फिर भी मा तुम प्रति-वधू के चिर मुहाग के मुकुम हो? प्रेरणा काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह इन रिपुओ वा सथात बरी- रहते हैं, निशि दिन दिल में यह आधारे ए हम विपशय जनम