पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१३७

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za करती, गाडी चर-हचर-खंड भडभडभड-भड-भड दचके लगते, कबड-खाबड है जग-मग को यह घरती इस अपूर्ण नि साधनता मै छटा दिखाते क्या तुम हो? असम्पूण उत्क्रान्ति वधू के क्या तुम रजित युयुम हो? मे विषय-वासना, कामना, नहो, नहीं यह है विडम्बना, वस केवल तुम हो तुम हो, पापो के दुर्वल छल-बल तुम, पुण्यो के चल भी तुम हो, पुण्य इनमे भो तुम ही तुम हो, अजब अटपटे स्प धरे हो, मुरा, बहुरगी तुम हो, तुम यह भी हो, तुम वह भी हो, इधर-उघर तुम ही तुम हो प्रति तुम्हारी है, तुम उसके चिर सुहाग के मुरुम हो। अगम्पूर्णता पदन्यलगता मभी तुम्हारी जिप बनी गह ठगिनी एना आयी है को बनो-टनी, $14 दम विषपाय नम r RO