पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४८

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भानय ने जब निज हग खोले तव उनसे किसने झांका था? बैठ नयन-वातायन में तव किसने इस जग को आका था ? वह भय था? या वह अचरज था? अथवा क्या वह उत्सुकता थी? वह थी ज्ञान-पिपासा क्या कुछ या वह बेसुध भावुकता यो? कुछ कहते है वह अचरज था? कुछ कहते है वह तो भय था । हम कहते है वह विकार-पति धोई तत्त्व चेतना - भय था। ऐसा तत्व, झलकती रहती जिसमे महिमा चिर चेतन की, ऐसा तत्व कि जिसके वश है सकल क्रियाएँ सवेदन को, वह, जो प्रकृति छया-उद्दीपन अपने में अवित करता है, ऐसा तत्त्व कि शोत-उष्ण से जो निज को शक्ति करता है, जिसमे वाह्य प्रभावो परे तिन धारण करने की क्षमता है, वही तत्त्व माका था हग रो जिसरी कही मही समता है। हम विषपायी अनम के १२५