पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१४९

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? प्रकृति विलोको थी यदि नर ने नयनो मे केवल भय भरकर, तो फिर उसके मन में कैसे जागा अन्वेषण सशय-हर? भय वश मानच कहो कभी क्या हो उठता है यो लीलोत्सुक भोति ग्रस्त तो मदा रहेगा गहन कन्दराओ में छिप-लुक । और न केवल अचरज ही से खुलती है उलझन सिरजन की। मानव-याना मे लगती है पूर्ण शक्तिया मानव मन की टुबाडेन्ट्वडे घर के कोई क्यो मानब को सदा निहारे ? उसको यो यो काटे कोई- विन समझे औ' बिना विचारे? मानय गठरी नहीं राग की, नही विकारो का अनुगामी, काम, क्रोध, भय, लोभ,मोह, मद, अचरज, वह इन सब का स्वामो। दिखने में जो इनका पुतला, पर, वास्तव में जो निष्कामी,- आमा ले दोपव चेतन का, वह अभिमानी, निपट अनामी। १२१ हम विपपाया सनम