पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५१

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कही बरफ था, कही धूप थी, पाही भयानक आंधी-पानी, अनजानासा सारा जग था, निखिल प्रकृति यह थी अनजानो, ऐसे जग मे कहो क्या करे निपट निल मानव एवाकी? जन विन, शम्न हीन, नि साधन, कैसे विजय करे वसुधा की? मानव शिक्षक हटा कुछ पीछे, मानव - हिय भय भरा भयकर लेकिन उससे कहा किसी ने कि रे मनुज, तू है शिवशकर 11 1 पीछे हटा, बढा फिर आगे, पाव लडसटाये हिय धडका, मिच गये नमन भो, निकला खेद - स्वेद बहू - बहकर, किन्तु न रुकी चरण गति उसकी, मानव सतत गया बढता ही, होने लगा कम्ब - पय निर्मित, मानव सतत गया चढता ही, प्रकृति मानिनी के चूंघट को लगा सोलने थोरे - धीरे, गहन अगभ्या को यह गागन, लाया ज्ञान सरोवर तोरे। १२८ दम विषपायी जनम 1