पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५६

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2 ? कस्त्व' कोऽह, मानव, तेरा आरम्भ कहाँ ? मानव तेरी उद्भूति कहाँ ? तेरे जीवन का स्रोत कहा तेरी यह भादि प्रसूति कहाँ ? तू कव जागा'तू कब उट्ठा जा से तू कब चैतन्य हुगा जग के इन जगम जीवो मैं कब से तू, बोल, अनन्य हुआ? फैसी परिभाषा ओ द्विपद जीव, तू नीन अरे? क्तिने दिन से तू विचर रहा कैसे - बैरों रूप घरे? 7 तेरी 7 मैं मानव हूँ, मनु वशज हूँ, मै क्या अपना इतिहास कहूँ में अपने से कैसे निज उद्भव और विकास कहूँ ? इतिहास बना मम भ्रू विलास मन्धन्तर मेरे दास बने, घटनाओ के क्रम तो मेरे प्रतिविम्बो है आभास बने। में इतनी बडी कहानी हूँ जिसका जय है अज्ञात, सखे, मैं आदि-अन्त से परे, यहा अथ-इति की कौन निसात, मावे ? इम रिपाया जनाव १३३