पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५५

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सस्कृत न हो सका हृदय गाव, कर लिया अमित चौद्धिक विकास, तो आओ मेरे जबडे या गरज उठा है सवनाश ! आ पहुंचा है जिस ठोर मनुज, उस ठौर आज है सवनाश, यदि, यह अपने हिय को मय पार कर ले न आज अपना विकास । ये अगारे, ये सन लपटें, यह बुद्धि-प्रज्वलित वैश्वानर, यह अति प्रचण्ड मस्तिष्क ज्याल, जो थबक रही है हहर-हहर ये सव कर देंगी भस्मसात् जीवित जन की ठठरियों आज अयथा रहेगी वस राखो की कुछ गटरियाँ नाज में श्रीय कारागार, बरेली ३० जनवरी १९४४ चेतो, १३२ हम विषपाली जनमक