पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१५८

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इस विस्तृत-से वक्षस्थल मे जिसको कहते आकाश महा- इस नीले-से गमनागन मे, था कभी नाचता नाश महा, अगारो का था खेल यहाँ, सोलो को या इक बस्ती थी, या आधार का राज यहाँ, लपटो ही की हस्ती थी, जिसको जड-जगम कहते है उसका न पता था कही यहाँ, जलचर, थलचर की कौन है ? जल-थल भी तो थे नहीं यहाँ । उन सर्वभक्षिणी लपटो मे लिपटा था आविर्भाव स्वयं, उस महानाश के नर्तन मे था विश्व-गृजन का चाव स्वय, प्रलमकारी आग्नेय था आदि रूप निर्माणो बा उस सव - दहन की लाली मे था तत्त्व निहित चिर-प्राणी का पावक को दाहक होली की गोदी में सृजन विहसता था सहारकारिणी लीला में चिर-मुन्दर उद्व वराता था। दम निपपायो जनम के १२५