पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१६२

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घा काल-ज्ञान से बहुत दूर उस सवनादा का रास- रंग, उस समय फाल-अनुभव-फर्ता मानव था अवगुण्ठित, अनग, भावी, अतीत ओं' वर्तमान थे एक रूप औ' एक प्राण, काल - अय के गुण-बन्धन से था विनिर्मुक्त वह कालमान, वह महाकाल था आदि-रूप, या धा निर्मम सतश्री अकाल, थे विश्व सृजन मे पूर्ण लीन जिसको ग्रीया के तन्तुजाल धू-धू करती उन लपटो से, अगारी से, ज्वालाओ से,- धूमायित उन कुण्डलियो से, प्रज्वलित अग्नि-मालाओ से- अपने को पूर्णावृत करके बैठा था क्या कोई साजन 2- जिसका कन्दुक था अग्निपुज, या महाशून्य जिसका आसन ? क्या कोई लोलामय भी है लोकान्तर जिसकी कृतियाँ हैं ? ताराओके ये चलन कलन विसकी लीला को सृतियाँ है? दम विपपायी सनम के १८