पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१६४

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प्राव ध यह पिण्ड जिरो भूमाल मा अभिपात मिला- जिगोती पर माज मनो उदगम का गुम्मा मिला- पोरे-पोरग पला परित मारा यो अत्तम्मल आकार-हा तारम अति पनो नृत उम हलचल में सपटा गो युझी-मुमो हो हा गया वायू आवरण यहाँ, पृथिवी हो गयी उप-वराला, लहरें उट्ठी मन हरण यहाँ । हा जल यो पल-पल पनि म मानो 'वजीया यी रसधार वही, उदिन का स्फोट विकास हुआ, जीवन प्रेरणा पुकार तृण ने, विदपा ने उग्रोवी होकार जीवन-सन्देवा दिया, उरगो ने गतिमय होकर के अपने सिर गति का गलेश लिया, फिर गगन-विहारो और बई पगधारी पी वारी आयो, जलयर, यलचर, नभचर आये, नर आये औ' नारी आयो । हम विपायी जनमक १२३