पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१६९

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मैं चन्धन मे हूँ, किन्तु, अरे वन्धन मेरी ही कृतियाँ ये बन्धन तो मुझ निगुंण की गुणयुत होने की स्मृतियाँ है, मैं विनिमुक्त, जब उकताया अपनी अबद्ध परिभाषा से,- याकार-रहित मै, जब मचला साकार भाव की आशा से, वस तभी निरिन्द्रियता मेरी प्रकटी नव सेन्द्रियता होकर, मेंने ही इसे बनाया है अपनी यह निगुणता खोकर । अपने बन्धन का स्वामी मैं अपने बन्धन का दास बना, अपनी ही लीला-कृतियो का में आज निरा उपहास बना, मेरे नयनो के पानी का कारण मम हास-विरस यना, मेरे दिग्भ्रम का मूल स्रोत मेरा हो योणित-राम बना,- में भी रहा हूँगा विमुक्त अप तो हूँ जु-बद प्राणी, बन गया आज मैं तो अपने दन नवन्यपन या यभिमानी। $VY हम दिपाया जाम AB