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मैंने अपनी इन आँपो से अधिशला-जियाटा, देगो मा हो दोपहगे औं' पावा की स्याम मेघमाला, उत्थान नौर पननो वीरान लीला देवी, मस्मृति देयो, सपने देने, जागृत्ति देयो, सम्भम देये, ससृप्ति देखी, देगे मैंने इन नयनी से युग-युग के अपने पेल फई, विप्लव को पटिकाएँ देसी, देसी है. रेलमगेल की, मैंने अपने इन हाचो से पाहन-युग मे वन-विजय मिया, निर्माण किया, विध्वंस किया, जग को सुख-दुष, नप-अनय दिया, दुर्दात वन्म शुओ को भो मैने गृह-पोपित, दान्त किया । बल्गर, अयुग, नाथो के बल दुदमनीयो को शान्त किया । गोजन-धान्यो या चया पिया, यो मेने अपना वाण रिया, उटजो, भवना, प्रागादीमा जगतौराष्टगि विश। हम विष्पापी जनम के न