पृष्ठ:हम विषपायी जनम के.pdf/१७६

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है निमित रौरख नरम विया, मैंने भूतल मे यहाँ - य, उमडे घोणित के दा पई ज्यों ही में पहुँना जहाँ-जहाँ अमि और अगि से में गेटा, हो गयी रक्त-अम्बरा घरा, वीभग दममान बना यह जा जो विगो रामय था हरा-भरा, इस आंगन में है गुलग रही, मेरो मुलगायो हुई चिता, मम असि के घाट चढी-उतरी कालो की टोलो विजिता । मैने हो नाज बनाया है अपना म्वरुप बीभत्त वडा, मैं आग उगलता हूँ जग के इस चतुप्पथ पर सडा-खटा। निर्माण - तत्य ने आमा से था मेरा आविष्कार किया, पर मैंने तो जब तक जग को केवल विनाश-उपहार दिया, आगे पीछे, दायें, यायें, भट्ठियाँ नाश को घधक रही, अगारो फे अम्बार लगे, शोलो से लग भभक रही। हम विपपागी जनम के १५